रविवार, जून 14, 2020

दिल्ली बचाओ


राकेश दुबे

आखिर कैसे बचेगी दिल्ली कोरोना संक्रमण के प्रकोप से? कोविड - 19 महामारी से दिल्ली और दिल्ली वालों का बुरा हाल है। अनलॉक – 1 के बाद से दिल्ली में पॉजिटिव मामले तेजी से बढ़े हैं और
दिन प्रतिदिन इनमें हजारों का इजाफा हो रहा है। जिसके चलते इस पर काबू पा लेना अब दिल्ली सरकार के वश की बात नहीं रही। यहां के लोग बुरी तरह परेशान हैं। ऊपर से दूसरे राज्यों के कोरोना मरीज इलाज के लिए दिल्ली के अस्पतालों का रुख कर रहे हैं, जबकि दिल्ली के अस्पतालों में पहले से ही भीड़ है। दिल्ली सरकार के मंत्री तो यहां तक कह चुके हैं कि दिल्ली में कम्युनिटी स्प्रेड हो चुका है, मगर केंद्र सरकार इस बात को मानने को तैयार नहीं। कोरोना के बढ़ते हुए मामले पर दिल्ली के उप राज्यपाल सर्वदलीय बैठक कर इसका कोई हल ढ़ूंढ़ने की कोशिश में लगे हैं। आखिर हो क्या रहा है? दिल्ली में कोरोना के बढ़ते हुए मामलों पर ये सब करना क्या चाहते हैं? केंद्र सरकार दिल्ली के मुद्दे पर अलग – थलग क्यों खड़ी है? क्या उसकी जिम्मेदारी नहीं है कि वह दिल्ली के इन मसलों का कोई सही हल निकाले? क्या कोरोना विस्फोट के बाद ही दिल्ली की स्थिति के बारे में इन लोगों को बात समझ आएगी? यह बात दिल्ली के लोगों की भी समझ में नहीं आ रही।

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बीमार हैं। कुछ दिन पहले ही वे कोरोना मरीजों के बिगड़ते हुए हालात को देखते हुए दिल्ली से बाहर के कोरोना मरीजों का इलाज दिल्ली के अस्पतालों में न कराने की बात कह चुके हैं। पर उनकी बात का लोगों ने गलत अर्थ लगा लिया। और फिर उनकी उस बात को मानता कौन है? दिल्ली के अस्पतालों में बाहरी लोगों को इलाज की अनुमति न देने के केजरीवाल के बयान को दूसरे ही दिन उपराज्यपाल अनिल बैजल ने बदल दिया। आखिर हो क्या रहा है? यह बात दिल्ली के किसी भी व्यक्ति की समझ से परे है। माना कि देश का कोई भी नागरिक देश के किसी भी अस्पताल में अपना इलाज करा सकता है, हमारा संविधान उसे इसकी इजाजत देता है। मगर यहां प्रश्न यह उठता है कि ऐसे समय में जब दिल्ली के अस्पतालों में दिल्ली के ही कोरोना मरीजों के लिए पर्याप्त जगह नहीं है, तो वहां पर दिल्ली के बाहर से आने वाले लोगों का इलाज कैसे किया जाए? क्या यह गंभीर विषय नहीं है। क्या इस पर उप राज्यपाल सहित अन्य राज्यों की सरकारों को सोचना नहीं चाहिए? आखिर दिल्ली के बाहर के लोग अपने राज्य के अस्पतालों में ही अपना इलाज क्यों नहीं कराते?

कोरोना जैसी गंभीर और लाइलाज बीमारी के चलते आज पूरी दुनिया त्रस्त है। कोरोना से अब तक लाखों लोगों की जान जा चुकी है। भारत में भी मरने वालों की संख्या में दिन ब दिन इजाफा हो रहा है। मगर हमारे देश में बीमारी पर राजनीति हो रही है। दिल्ली की सीमा से सटे उत्तर प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की सरकारें अपने राज्य के कोरोना मरीजों की देखभाल अपने ही राज्य में क्यों नहीं कर रही हैं? यदि उनके पास अस्पतालों और स्वास्थ्य सेवाओं की कमी है, तो यह उनकी अपनी निजी समस्या है। उन्हें अस्पताल और स्वास्थ्य सेवाओं का इंतजाम करना चाहिए। गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा, गुरुग्राम के लोग दिल्ली के अस्पतालों में ही इलाज क्यों कराना चाहते हैं? इसलिए कि दिल्ली देश की राजधानी है और वहां के अस्पतालों में इलाज की अच्छी और अत्याधुनिक व्यवस्था है। ऐसे में कहां जा सकता है कि उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार, हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार और पंजाब की अमरिंदर सिंह सरकारें अपने – अपने राज्यों में स्वास्थ्य संबंधी सेवाओं में फिसड्डी हैं? इतने समय में वे इलाज के अत्याधुनिक अस्पताल और बेहतर संसाधन क्यों नहीं जुटा पाईं? आखिर ये सरकारें यहां के शहरों के राजस्व का उपयोग करती हैं। दिल्ली सरकार को राजस्व का कोई हिस्सा नहीं मिलता। जब गाजियाबाद, फरीदाबाद, नोएडा और गुरुग्राम के राजस्व का कोई हिस्सा दिल्ली सरकार को नहीं मिलता, तो इन शहरों की सरकारें ऐसे में अपने लोगों का खयाल क्यों नहीं रख रही हैं? कोरोना जैसी महामारी से निपटने के लिए प्रत्येक सरकार को संयम और सूझबूझ से काम करना होगा। ताकि किसी और राज्य या केंद्र शासित प्रदेश पर उनकी अपनी जिम्मेदारियों का बोझ न पड़े। अन्यथा स्थिति और जटिल होती जाएगी और इन सब में पिसना पड़ेगा जनता बेचारी को।

दिल्ली के स्वास्थ्य मंत्री सत्येंद्र जैन चिल्ला – चिल्ला कर कह रहे हैं कि दिल्ली में कोरोना का कम्युनिटी स्प्रैड हो चुका है। कोरोना मरीजों की संख्या हर दिन हजारों में बढ़ रही है। तो दूसरी ओर उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया 31 जुलाई तक दिल्ली में करीब साढ़े पांच लाख कोरोना के मामले होने की बात कर रहे हैं और ऐसे समय में उनकी सरकार को 80 हजार बेड की आवश्यकता होगी। ऐसे में दिल्ली से बाहर से आने वाले मरीज का इलाज कैसे हो सकेगा? जाने माने हृदय रोग विशेषज्ञ पद्मश्री डॉ. के के अग्रवाल भी बार – बार यह चेतावनी दे रहे हैं कि जुलाई महीने में भारत में कोरोना संक्रमण अपनी पीक (चरम) पर होगा। पर इन सब की बात मानता कौन है? कोई इनकी बातें सुनने को तैयार भी नहीं। आखिर क्यों इन लोगों की बातों को अनसुना किया जा रहा है? उनकी बातों को गंभीरता से क्यों नहीं लिया जा रहा है?

इस विषय पर केंद्र सरकार की चुप्पी कोरोना जैसी गंभीर महामारी की समस्या का कोई समाधान नहीं है। केंद्र सरकार को इस मामले में हस्तक्षेप करना चाहिए, ताकि स्थिति बिगड़ न जाए। उसे बिगड़ने से पहले सुधारा जा सके। पर केंद्र सरकार के पास समय कहां है? उसके मंत्री कुछ राज्यों के आगामी चुनाव के लिए वर्च्युअल रैलियां कराने में व्यस्त हैं। संकट के ऐसे समय में चुनाव जरूरी हैं या देश की जनता की हिफाजत? यह एक यक्ष प्रश्न है? जिसका जवाब शायद केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के पास भी नहीं है। राज्यों के चुनाव बाद में भी कराए जा सकते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब कह चुके हैं कि जान है तो जहान है, तो फिर वे देश की जनता की जान की परवाह क्यों नहीं कर रहे हैं? उनकी सरकार को दिल्ली की समस्या का हल जल्द से जल्द ढ़ूंढ़ना चाहिए, ताकि समय रहते इस मुद्दे पर कोई निर्णय हो सके अन्यथा स्थितियां बहुत ही भयावह और विस्फोटक हो सकती हैं।   

 लेखक :  वरिष्ठ पत्रकार, स्तंभकार एवं मीडिया विशेषज्ञ हैं.

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