सोमवार, जून 08, 2020

धृतराष्ट्र क्यों बनी हुई है शिवसेना ?

मजदूरों के मददगार सोनू सूद की आलोचना कर खुद फंसी पार्टी


राकेश दुबे

    अपनी नाकामी छिपाने के लिए दूसरों पर आरोप – प्रत्यारोप करना शिवसेना की पुरानी आदत है।
फिर वह मुंबई महानगर पालिका के कामकाज या वहां के क्रियाकलापों के विषय की बात हो अथवा सत्ताधारी सरकार के कामकाज की। वह हमेशा से ऐसा ही करती आई है। तभी तो फिल्म अभिनेता सोनू सूद के बारे में शिवसेना की हालिया टिप्पणी उसे धृतराष्ट्र की भूमिका में खड़ा करती है। सोनी सूद फिल्मों में विलेन का रोल भले ही करते हों, मगर असल जिंदगी में वे मजदूरों के मसीहा हैं। मसीहा वह इसलिए बन गए, क्योंकि कोविड – 19 काल में लॉकडाउन के समय जब मुंबई के मजदूरों की सुध लेने वाला कोई नहीं था, ऐसे में सोनू ने अपने खर्चे से उन मजदूरों के लिए बसों की व्यवस्था की, ताकि वे बिना किसी परेशानी के आराम से अपने गांव पहुंच सकें। इस सहायता और दरियादिली के लिए वे मजदूरों के महात्मा बन गए हैं। मजदूर उन्हें महात्मा कह कर पुकारने लगे हैं। सोनू की इसी महात्मा वाली लोकप्रियता से महाराष्ट्र की सत्ताधारी पार्टी शिवसेना बहुत परेशान है। महात्मा वाली बात शिवसेना के गले नहीं उतर रही। अपनी सरकार की नाकामी छिपाने के लिए अब वह सोनू पर बीजेपी कनेक्शन का आरोप लगा रही है।

शिवसेना के मुखपत्र में सोनू पर निशाना साधते हुए लिखा गया – कोरोना वायरस के दौरान लॉकडाउन में एक नए महात्मा आ गए हैं, जिसे लोग सोनू सूद कहते हैं। ऐसा कहा जा रहा है कि इस एक्टर ने लाखों प्रवासियों को उनके अपने राज्यों में भेजा है तो क्या इसका मतलब यह है कि केंद्र और राज्य सरकारें प्रवासियों को भेजने के लिए कोई काम नहीं कर रही हैं। मुखपत्र में यह भी सवाल उठाया गया कि जब राज्य सरकारें प्रवासियों को आने नहीं दे रही हैं तो फिर इतने लोग जा कहा रहे हैं।

शिवसेना सांसद संजय राउत की इन बातों पर जब आलोचना के स्वर मुखर हुए तब राउत ने सफाई देते हुए कहा कि सोनू सूद एक अच्छे कलाकार हैं और उन्होंने अच्छा काम किया है। पर राउत ने एक बार फिर कहा कि जिस तरह फिल्मों में हर एक्टर के पीछे डायरेक्टर होते हैं, ऐसे में हो सकता है कि सोनू के इस काम के पीछे कोई पॉलिटिकल डायरेक्टर हो। उनका इशारा साफ था कि सोनू को इस काम के लिए भाजपा ने प्रायोजित किया है। हालांकि इस मसले पर सोनू सूद ने मातोश्री जाकर मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की और उनसे कहा कि वे आगे भी प्रवासी मजदूरों की इसी तरह सहायता करते रहेंगे। संजय राउत के इस बयान की आलोचना करते हुए शिवसेना के पूर्व सांसद और मौजूदा कांग्रेस नेता संजय निरुपम ने कहा कि लॉकडाउन के समय मजदूरों की मदद करने में शिवसेना और उसकी सरकार पूरी तरह से फेल साबित हुई है। ऐसे में जब सोनू सूद एक भगवान की तरह लोगों की मदद के लिए आगे आए तो उनकी तारीफ करने की जगह आलोचना की जा रही है, यह बेहद दुखद है। महाराष्ट्र के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी भी सोनू के काम की प्रशंसा कर चुके हैं और उन्हें हरसंभव सहयोग का आश्वासन भी दिया था।

बता दें कि कोरोना संक्रमण में लॉकडाउन के समय महाराष्ट्र खासकर मुंबई से पलायन कर रहे मजदूर जब अपने परिवार के साथ गांवों के लिए पैदल ही चल पड़े, यह दृश्य देखकर उस समय किसी का दिल नहीं पसीजा। सोनू सूद को मजदूरों की इस दुर्दशा ने झकझोर कर रख दिया। ऐसे समय में उन्होंने मजदूरों की व्यक्तिगत तौर पर मदद की। उन्होंने मजदूरों को बसों से उनके घर भिजवाया। उसका सारा खर्चा खुद वहन किया। आज भी वे अपनी तरफ से मजदूरों की सहायता में हरसंभव प्रयासरत हैं।
शहीद – ए – आजम के भगत सिंह और दबंग के छेदी सिंह से फिल्मों में मशहूर अभिनेता सोनू सूद पंजाब में मोगा के रहने वाले हैं। सोनू ने हिन्दी, तेलुगू, कन्नड़ और तमिल फ़िल्मों में अभिनय किया है। शहीदे-ए-आजम, युवा, चंद्रमुखी, आशिक बनाया आपने, जोधा अकबर, सिंह इज किंग, एक विवाह ऐसा भी, अरूंधति, दबंग, बुड्ढा होगा तेरा बाप, शूटआऊट एट वडाला, रमैया वस्तावैय्या, आर राजकुमार, इंटरटेनमेंट, हैप्‍पी न्‍यू ईयर, गब्‍बर इज बैक, दबंग 3 जैसी फिल्मों में अपनी भूमिका का लोहा मनवाने वाले सोनू इलेक्‍ट्रानिक्‍स इं‍जीनियर हैं। सोनू का जन्‍म लुधियाना, पंजाब में हुआ था। उनके पिता एक एंटरप्रेन्‍योर तो उनकी मां अध्‍यापिका थीं। उनका बैकग्राउंड फिल्‍मों से नहीं रहा है, इसके बावजूद उन्‍होंने फिल्‍मों को ही अपना कैरियर बनाया और इसमें वे सफल भी हुए। 

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