शुक्रवार, अप्रैल 20, 2018
सोमवार, मार्च 26, 2018
योगी सरकार का एक साल, चन्द मिसालें जौनपुर की भी
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कार्यकाल के एक साल पूरे होने पर प्रदेश की योगी सरकार जश्न मना रही है. सरकार आत्म मुग्धता के अतिरेक में जमीनी वास्तविकता से बेपरवाह "एक साल - नई मिसाल" का नारा लगा रही है. सरकार द्वारा पेश की गई मिसालें सुशासन की ओर बढ़ते हुए प्रदेश की सुनहरी तस्वीर दिखा रही हैं. आम जनता भी कुछ ऐसा ही देखना चाहती है लेकिन वास्तविक रूप में. जौनपुुर से संबंधित चन्द मिसालें इशारा दे रही हैंं कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है.
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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल में बनी नई मिसालें वर्तमान में चर्चा का विषय हैं। कहते हैं आग पर पकते चावल का एक दाना पूरी पतीली के भात का हाल बयां कर देता है। इसी कसौटी पर जौनपुर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि नई मिसालें बनीं तो जरूर लेकिन उनमें से कुछ ने आम जनता को सदमे में ला दिया।
"एक साल - नई मिसाल" के नारे के साथ शुरू हुआ योगी सरकार का प्रशस्ति गान प्रदेश में पूरे महीने तो चलेगा ही। जौनपुर में अपराधियों ने सरकारी उत्सव की शुरुआत में ही वारदातों के जरिए शासन को जोरदार सलामी देकर बताया कि 'किसका राज' अभी भी चल रहा है। राजधानी में जब आत्म-मुग्धता का सरकारी उत्सव शुरू हुआ था, उसी समय जौनपुर-लखनऊ राजमार्ग पर स्थित बदलापुर बाजार में वहां के परेशानहाल व्यापारी अपनी दुकानों को बंद करके सरकार को आईना दिखा रहे थे। काम-धाम छोड़ कर सड़क पर उतरे बदलापुर के यह व्यापारी आये दिन लगातार हो रही चोरी, छिनैती, लूट जैसी वारदातों से त्रस्त हैं और क्षेत्रीय पुलिस की कार्यप्रणाली से बेहद असंतुष्ट होने के कारण उन्हें आन्दोलन पर मजबूर होना पड़ा।
प्रदेश में योगी सरकार की हालिया सख्ती के कारण पुलिस रिकार्ड में दर्ज पेशेवर अपराधियों के होश उड़े हुए हैं, यह सच है। लेकिन जौनपुर में बीता पूरा साल आम लोगों को यह भरोसा नहीं दिला पाया कि अब 'गुंडाराज' नहीं है। भयमुक्ति का एहसास जौनपुर के किसी भी हिस्से में होता तो शायद आम जनता में नई आशा उत्पन्न हो सकती थी। वर्तमान पुलिस अधीक्षक के. के. चौधरी और उनके अधीनस्थ राजपत्रित अधिकारियों ने तो अपनी कार्यप्रणाली से कुछ बदलाव का एहसास कराया लेकिन थाने- चौकियों पर बैठे पुलिस अधिकारियों और उनके मातहतों ने पहले से भी खराब हालत का एहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बात मिसाल की है तो बतौर मिसाल, वसूली और रिश्वत का कद बढ़ गया है। पहले भी मवेशी चुराये जाते थे लेकिन अब तो सरेआम लाद कर ले जाने की वारदातें होने लगी हैं।
दरअसल पुलिस सिस्टम की पुरानी खामियों को दूर किए बिना सिर्फ उसे नई और आधुनिक तकनीक एवं संसाधनों से लैस करके वांछित परिणाम की अपेक्षा करना ही बदलाव में बाधक बन रहा है। पुलिस सुधार से संबंधित सिफारिशें सत्ता परिवर्तन के बाद भी बस्ते से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। पुलिस सेवा में अब आ रही नई सुशिक्षित जमात तेज, ऊर्जावान और काफी हद तक 'महकमे की गंदगी' से दूर है लेकिन सही सोच एवं जन सापेक्ष मानसिकता विकसित करने वाले प्रशिक्षण का अभाव उन्हें पुराने पुलिसिया ढर्रे पर ही ला देता है। जौनपुर में ही पुलिस पर निगाह डालने से यह साफ दिखाई देता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी सरकार का बेहद कड़ा तेवर आम जनता में बदलाव की आशा का संचार करता रहा लेकिन जौनपुर में जमीनी हकीकत देखते और झेलते हुए लोगों का मोहभंग होने लगा है। एक दुःखद मिसाल यह कि यहाँ सत्ताधारी पार्टी तथा मातृ संगठन के साफ-सुथरे दिखाई देते रहे कई प्रमुख नेता वसूली और भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान स्थापित करने में जी जान से जुटे दिखाई देने लगे हैं। सरकार के कड़े तेवर से शुरू में घबराए-बौखलाए घोषित भ्रष्ट सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के चेहरों पर दिखाई देती निश्चिंतता भरी मुस्कान जाहिर है कि जनता को क्या संदेश दे रही है। सरकारी काम थोड़ा और सुस्ती से निपटाने की बढ़ी प्रवृत्ति ने काम में गति पैदा करने की कोशिशों को पहले से भी 'अधिक महंगा' कर दिया है। शायद यह भी एक नई मिसाल ही है।
सड़कों की समयबद्ध हालत सुधारने की साल भर हुई सरकारी घोषणाओं से जौनपुर के संबंधित सरकारी विभाग तटस्थ रहे। इस दिशा में काम हाल ही में शुरू भी हुआ तो तब, जब यहां पर मुख्यमंत्री के दावों और वायदों का जम कर मजाक बन चुका था। पूरे साल मुख्यमंत्री के फरमानों और जनता की फरियादों को अनसुना करने वाले सरकारी विभागों ने वित्तीय वर्ष की समाप्ति का समय आते ही ताबड़तोड़ काम लगवा कर शहर की सड़कें बनवाना शुरू कर दिया। बजट खपाने के लिए दिखाई गयी इस तत्परता से बन रही सड़कों पर
एक निगाह डालते ही समझा जा सकता है कि काम में गुणवत्ता देखना बेवकूफी है। भू माफिया के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई लेकिन दो कदम चलने के बाद ही जैसे मामला निपट गया। इसके बाद जौनपुर शहर में अधिक तेजी से नाला, पोखरा, मुख्य मार्गों के किनारे स्थित खड्डे पाट कर जमीन कब्जा करने की कोशिशें क्या सरकार को अच्छी मिसाल कायम करने का मौका दे रही हैं ? खास बात यह है कि सरकारी मंशा के विपरीत हो रही इस तरह की कोशिशों में सत्ताधारी पार्टी से जुड़े स्थानीय जन प्रतिनिधि भी सीधे तौर पर शामिल दिखाई दे रहे हैं।
जौनपुर में तेज रफ्तार बाइकों पर सवार लफंगा शैली के युवाओं का सड़कों और चौराहों पर उत्पात एक साल में कई गुना बढ़ा है, फर्क सिर्फ इतना है कि अब उनके सिर पर केसरिया गमछा बंधा रहता है। शहर में कोतवाली चौराहे से लेकर ओलंदगंज के बीच भीड़ भरी सड़क पर बेहद मामूली बातों को लेकर प्रतिदिन औसतन चार-पाँच मारपीट की घटनाएं इन्हीं 'बहादुरों' के सौजन्य से हो रही हैं। जौनपुर शहर में शराब एवं बीयर की दुकानों के आसपास सरेआम - सरेराह कहीं भी धड़ल्ले से नशीली चुस्की लेते पियक्कड़ों में युवाओं की भागीदारी 75 फीसदी तक पहुँच गई है। मौजूदा 'सात्विक सरकार' की नई आबकारी नीति में अधिक से अधिक शराब बेच कर मोटा राजस्व वसूलने की चाहत क्या सरकारी अमले को 'कहीं भी पियो - खूब पियो' की बयार रोकने देगी ।
त्योहारों पर शक्ति प्रदर्शन की लगातार बढ़ रही प्रवृत्ति भी नई मिसाल बन रही है। जौनपुर में एक साल के दौरान धार्मिक जुलूसों की बढ़ती संख्या, उनमें बढ़ती भीड़ और उससे अधिक अनुपात में लहराये जाते हथियार हमें किस दिशा में लेकर जा रहे हैं ? यहां निकट भविष्य में निकलने वाले किसी भी धार्मिक जुलूस को बतौर प्रमाण देखा जा सकता है। सरकार पर्यटन में अपार संभावनाएं देख रही है। पर्यटन स्थलों के विकास की भारी-भरकम योजनाएं घोषित हुई हैं लेकिन जौनपुर की ऐतिहासिकता और यहाँ पर पर्यटन की संभावनाओं को प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा अचानक सिरे से खारिज कर देना भी एक मिसाल है। नई मिसालें ढेरों हैं। सरकार सामने अच्छी मिसालें रखेगी और विपक्ष पेश करेगा सिर्फ बुरी मिसालें। फैसला करना है जनता को और वह करेगी इसका वक्त आने पर।
#अरविंद उपाध्याय
मंगलवार, मार्च 06, 2018
लोक संगीत समारोह
लोक संगीत समारोह
सुरुचिपूर्ण लोक संगीत को जीवित रखने के उद्देश्य से श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति संस्थान (लखनऊ राजमार्ग पर नौपेड़वा से चार सौ मीटर की दूरी पर चुरावनपुर गाँव में स्थित) प्रत्येक वर्ष होली पर्व पर लोकगीत कलाकारों को जुटा कर कार्यक्रम आयोजित करता है। इस वर्ष भी संस्थान की तरफ से चुरावनपुर के मेघदूत परिसर में "लोक संगीत समारोह" का आयोजन किया गया। इसमें जिले के विलुप्त हो रहे फाग गीतों फगुआ, चौताल, चहका, धमार, उलारा, बेलवइया एवं चैता आदि की प्रस्तुति की गई।हर गीतों पर ढोलक की थाप, मजीरा और अन्य परम्परागत वाद्य यंत्रों की धुन पर उपस्थित श्रोतागण झूमने पर मजबूर हो गए।
फागुनी गीतों के धमाल में लोक गायक बाबू बजरंगी सिंह, सत्यनाथ पांडेय, झीनू दुबे, कैलाश शुक्ल, त्रिवेणी प्रसाद पाठक, लक्ष्मी उपाध्याय, भुट्टे मियां, नजरू उस्ताद, कृष्णानंद उपाध्याय सहित साथियों ने "बनन में कोयल कागा बोलय, छतन पे बोलई हे मोरवा, घरवन में गौरैया चहचहानी हो रामा पिया नहीं आए, बाज रही पैजनिया छमाछम बाज रही पैजनिया" जैसे फागुनी गीतों को सुना कर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। संस्थान अवधी लोक गीतों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सक्रिय है। संस्थान के संरक्षक डॉ.अरविंद मिश्र ने कहा कि संस्थान का प्रयास होगा कि यह परंपरा विलुप्त न हो। अध्यक्ष डॉ.मनोज मिश्र ने बताया कि आज होली के नाम पर परंपरागत लोक गीतों के स्थान पर अश्लील गीतों का प्रदर्शन हो रहा है, जिसका विकल्प बनाये रखने के लिए संस्थान कृत संकल्पित है। बकौल डॉ. मनोज मिश्र उन्होंने जब यह आयोजन अपने हाथ में लिया था तब जिले में करीब बीस अच्छे कलाकार शामिल होते थे लेकिन अब सिर्फ सात कलाकार ही शेष हैं। गायकों को डॉ.अरविंद मिश्र एवं पंकज द्विवेदी द्वारा शाल पहनाकर सम्मानित किया गया। संचालन पं.श्रीपति उपाध्याय व आभार ओंकार मिश्र ने व्यक्त किया।
सुरुचिपूर्ण लोक संगीत को जीवित रखने के उद्देश्य से श्री द्वारिकाधीश लोक संस्कृति संस्थान (लखनऊ राजमार्ग पर नौपेड़वा से चार सौ मीटर की दूरी पर चुरावनपुर गाँव में स्थित) प्रत्येक वर्ष होली पर्व पर लोकगीत कलाकारों को जुटा कर कार्यक्रम आयोजित करता है। इस वर्ष भी संस्थान की तरफ से चुरावनपुर के मेघदूत परिसर में "लोक संगीत समारोह" का आयोजन किया गया। इसमें जिले के विलुप्त हो रहे फाग गीतों फगुआ, चौताल, चहका, धमार, उलारा, बेलवइया एवं चैता आदि की प्रस्तुति की गई।हर गीतों पर ढोलक की थाप, मजीरा और अन्य परम्परागत वाद्य यंत्रों की धुन पर उपस्थित श्रोतागण झूमने पर मजबूर हो गए।
फागुनी गीतों के धमाल में लोक गायक बाबू बजरंगी सिंह, सत्यनाथ पांडेय, झीनू दुबे, कैलाश शुक्ल, त्रिवेणी प्रसाद पाठक, लक्ष्मी उपाध्याय, भुट्टे मियां, नजरू उस्ताद, कृष्णानंद उपाध्याय सहित साथियों ने "बनन में कोयल कागा बोलय, छतन पे बोलई हे मोरवा, घरवन में गौरैया चहचहानी हो रामा पिया नहीं आए, बाज रही पैजनिया छमाछम बाज रही पैजनिया" जैसे फागुनी गीतों को सुना कर श्रोताओं को भाव-विभोर कर दिया। संस्थान अवधी लोक गीतों के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु सक्रिय है। संस्थान के संरक्षक डॉ.अरविंद मिश्र ने कहा कि संस्थान का प्रयास होगा कि यह परंपरा विलुप्त न हो। अध्यक्ष डॉ.मनोज मिश्र ने बताया कि आज होली के नाम पर परंपरागत लोक गीतों के स्थान पर अश्लील गीतों का प्रदर्शन हो रहा है, जिसका विकल्प बनाये रखने के लिए संस्थान कृत संकल्पित है। बकौल डॉ. मनोज मिश्र उन्होंने जब यह आयोजन अपने हाथ में लिया था तब जिले में करीब बीस अच्छे कलाकार शामिल होते थे लेकिन अब सिर्फ सात कलाकार ही शेष हैं। गायकों को डॉ.अरविंद मिश्र एवं पंकज द्विवेदी द्वारा शाल पहनाकर सम्मानित किया गया। संचालन पं.श्रीपति उपाध्याय व आभार ओंकार मिश्र ने व्यक्त किया।
सोमवार, फ़रवरी 26, 2018
प्रतीकों की पीठ पर जातीय गोलबन्दी
प्रतीकों की पीठ पर जातीय गोलबन्दी
राजनीतिक लक्ष्यों के लिए जातीय गोलबन्दी की नई कोशिशें फिर तेज हो रही हैं। अगले लोकसभा चुनाव 2019 पर केन्द्रित इन बेचैन कोशिशों से मनमाफिक परिणाम निकालने में ढेरों संगठन जुटे हुए हैं। केन्द्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाना है। संकेत मिल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में विजय रथ दौड़ाने के लिए पिछले चुनाव की तरह इस बार भी पूर्वांचल को ही केन्द्र बनाया जायेगा। इसलिए जौनपुर में भी कई संगठनों द्वारा जातिगत जमावड़े की मुहिम शुरू कर दी गई है और इसके लिए प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
जातीय स्तर पर लोगों को एक मंच पर लाने के लिए संगठन के नेताओं का कद छोटा पड़ रहा है, इसलिए अब इतिहास के पन्नों से खोज कर 'प्रतीक' लाये जा रहे हैं। ताजा मामला चौहान बिरादरी के लोगों को किसी तरह एकजुट करने की एक कोशिश का है। बीती 13 फरवरी को जफराबाद क्षेत्र के हौज गाँव में स्थित शहीद स्मारक पर 'सम्मान समारोह' के नाम पर चौहान बिरादरी के लोगों को जुटाया गया। नई दिल्ली स्थित "प्राचीन लवणकार एवं व्यापारी जाति परिसंघ" नाम का एक संगठन इसका आयोजक रहा।
इस संगठन ने चौहान बिरादरी के बीच पर्चे बाँट कर जन सम्पर्क किया। बिरादरी के लोगों को बताया गया कि उनके पूर्वजों ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से लोहा लिया। देश की आजादी के लिए लड़ाईयां लड़ीं, अपना बलिदान दिया लेकिन उन्हें गुमनाम कर दिया गया। पक्षपाती साहित्यकारों तथा इतिहासकारों ने उनके योगदान का सही उल्लेख नहीं किया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हौज गाँव के 15 चौहान वीरों को महुआ के पेड़ पर लटका कर फाँसी देने तथा 1942 में अगरौरा एवं धनियांमऊ में ब्रिटिश फौज की गोली से मरे चौहान शहीदों को प्रतीक बनाकर उन्हें सम्मान दिलाने की अपील के साथ बिरादरी की भीड़ जुटाई गई।
कार्यक्रम में स्थानीय लोगों के अतिरिक्त परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुनीब सिंह, कर्नाटक से आये स्वामी पुरुषोत्तमानन्द, बिहार की पूर्व मंत्री रेनू देवी, पूर्व विधायक शिव शंकर चौहान भी शामिल हुए। इसके पूर्व संगठन के लोगों ने जौनपुर जिले में व्यापक तौर पर सम्पर्क करके बिरादरी को इन शहीदों के नाम पर एक जगह जुटाने की भरपूर कवायद की। इस जमावड़े का भविष्य में कौन सा राजनीतिक दल कितना फायदा उठा पायेगा, यह देखना है।
पिछले महीने अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा नाम के एक संगठन ने महाराणा प्रताप और महारानी पद्मावती जैसे ऐतिहासिक प्रतीकों के बलिदान को सामने रख कर जातीय गोलबन्दी की कोशिश शुरू की। बैंडिट क्वीन फूलन देवी की हत्या की स्वीकारोक्ति करने वाले एक चर्चित किरदार शेर सिंह राणा खास तौर पर जौनपुर में आयोजित क्षत्रिय महासभा के कार्यक्रम में शामिल होने आए। हालाँकि संबंधित कार्यक्रम को शेर सिंह राणा द्वारा प्रायोजित जातीय गोलबन्दी की कोशिश के तौर पर देखा गया। इसी तरह की कवायद में अलग-अलग नामों से कुछ अन्य संगठन भी सक्रिय हैं।
गौरतलब है कि ऐतिहासिक घटनाओं तथा व्यक्तित्वों को प्रतीक बनाकर जातीय स्तर पर लोगों को एक मंच पर लाने की कोशिशें नई नहीं हैं। लेकिन, जब-जब मुद्दों और वैचारिक स्तर पर राजनीतिक दल लड़ाई में अपने को कमजोर पाते हैं तब सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा, और जाति जैसे फैक्टर सामने रखे जाने लगते हैं। प्रतीकों के सहारे जातीय संगठन विकसित करने की कोशिशें अन्य जातियों के लोग भी करते रहे हैं। महर्षि परशुराम के नाम पर ब्राह्मणों के कई संगठन खड़े हैं तो भगवान चित्रगुप्त के नाम पर कायस्थों के अनेक संगठन ढोल बजा रहे हैं। सम्राट अशोक को अपने पूर्वज के तौर पर सामने रख कर मौर्य संगठनों ने उनके ऊपर अपना कब्जा मान लिया है। भगवान सहस्त्रबाहु के नाम पर जौनपुर से लेकर देश भर में जायसवाल समाज के कई संगठन आपस में ही तलवारबाजी कर रहे हैं। इस राजनीतिक खेल में तमाम महापुरुषों को आम जन मानस के बीच में से खींच कर उन्हें जातिगत खांचे में खड़ा कर दिया गया है। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर पर दलित संगठन अपना एकाधिकार समझता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को धीरे धीरे साहू समाज खींच रहा है। इसी तरह के ढेरों उदाहरण हैं।
विभिन्न संगठनों द्वारा जातिगत स्तर पर गोलबन्दी की हो रही कोशिशों को विशुद्ध रूप से से राजनीतिक माना जा रहा है। अगले लोकसभा चुनाव तक ऐसी न जाने कितनी कवायदें होंगी। तरह तरह के संगठनों द्वारा चलायी जा रही मुहिम के पीछे कोई न कोई राजनीतिक चेहरा छिपा हुआ है। इसके साथ ही कुछ ऐसे लोग भी इन कोशिशों में सीधे तौर पर बेहद सक्रिय हैं जिन्हें राजनीति की मुख्य धारा में स्थापित होने का यह शार्ट कट तरीका ही भा रहा है। इन्हीं पैंतरों से सत्ता सुख भोग रहे कई नेताओं के चेहरे, इन कोशिश करने वाले लोगों के इरादे बुलन्द कर रहे हैं। यह कोशिशें सफल कितनी होंगी यह तो भविष्य के गर्भ में है।
🔘अरविंद उपाध्याय
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