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कार्यकाल के एक साल पूरे होने पर प्रदेश की योगी सरकार जश्न मना रही है. सरकार आत्म मुग्धता के अतिरेक में जमीनी वास्तविकता से बेपरवाह "एक साल - नई मिसाल" का नारा लगा रही है. सरकार द्वारा पेश की गई मिसालें सुशासन की ओर बढ़ते हुए प्रदेश की सुनहरी तस्वीर दिखा रही हैं. आम जनता भी कुछ ऐसा ही देखना चाहती है लेकिन वास्तविक रूप में. जौनपुुर से संबंधित चन्द मिसालें इशारा दे रही हैंं कि जमीनी स्तर पर बदलाव लाने के लिए प्रभावी कदम उठाने की जरूरत है.
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उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के एक वर्ष के कार्यकाल में बनी नई मिसालें वर्तमान में चर्चा का विषय हैं। कहते हैं आग पर पकते चावल का एक दाना पूरी पतीली के भात का हाल बयां कर देता है। इसी कसौटी पर जौनपुर को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि नई मिसालें बनीं तो जरूर लेकिन उनमें से कुछ ने आम जनता को सदमे में ला दिया।
"एक साल - नई मिसाल" के नारे के साथ शुरू हुआ योगी सरकार का प्रशस्ति गान प्रदेश में पूरे महीने तो चलेगा ही। जौनपुर में अपराधियों ने सरकारी उत्सव की शुरुआत में ही वारदातों के जरिए शासन को जोरदार सलामी देकर बताया कि 'किसका राज' अभी भी चल रहा है। राजधानी में जब आत्म-मुग्धता का सरकारी उत्सव शुरू हुआ था, उसी समय जौनपुर-लखनऊ राजमार्ग पर स्थित बदलापुर बाजार में वहां के परेशानहाल व्यापारी अपनी दुकानों को बंद करके सरकार को आईना दिखा रहे थे। काम-धाम छोड़ कर सड़क पर उतरे बदलापुर के यह व्यापारी आये दिन लगातार हो रही चोरी, छिनैती, लूट जैसी वारदातों से त्रस्त हैं और क्षेत्रीय पुलिस की कार्यप्रणाली से बेहद असंतुष्ट होने के कारण उन्हें आन्दोलन पर मजबूर होना पड़ा।
प्रदेश में योगी सरकार की हालिया सख्ती के कारण पुलिस रिकार्ड में दर्ज पेशेवर अपराधियों के होश उड़े हुए हैं, यह सच है। लेकिन जौनपुर में बीता पूरा साल आम लोगों को यह भरोसा नहीं दिला पाया कि अब 'गुंडाराज' नहीं है। भयमुक्ति का एहसास जौनपुर के किसी भी हिस्से में होता तो शायद आम जनता में नई आशा उत्पन्न हो सकती थी। वर्तमान पुलिस अधीक्षक के. के. चौधरी और उनके अधीनस्थ राजपत्रित अधिकारियों ने तो अपनी कार्यप्रणाली से कुछ बदलाव का एहसास कराया लेकिन थाने- चौकियों पर बैठे पुलिस अधिकारियों और उनके मातहतों ने पहले से भी खराब हालत का एहसास कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। बात मिसाल की है तो बतौर मिसाल, वसूली और रिश्वत का कद बढ़ गया है। पहले भी मवेशी चुराये जाते थे लेकिन अब तो सरेआम लाद कर ले जाने की वारदातें होने लगी हैं।
दरअसल पुलिस सिस्टम की पुरानी खामियों को दूर किए बिना सिर्फ उसे नई और आधुनिक तकनीक एवं संसाधनों से लैस करके वांछित परिणाम की अपेक्षा करना ही बदलाव में बाधक बन रहा है। पुलिस सुधार से संबंधित सिफारिशें सत्ता परिवर्तन के बाद भी बस्ते से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। पुलिस सेवा में अब आ रही नई सुशिक्षित जमात तेज, ऊर्जावान और काफी हद तक 'महकमे की गंदगी' से दूर है लेकिन सही सोच एवं जन सापेक्ष मानसिकता विकसित करने वाले प्रशिक्षण का अभाव उन्हें पुराने पुलिसिया ढर्रे पर ही ला देता है। जौनपुर में ही पुलिस पर निगाह डालने से यह साफ दिखाई देता है।
भ्रष्टाचार के खिलाफ योगी सरकार का बेहद कड़ा तेवर आम जनता में बदलाव की आशा का संचार करता रहा लेकिन जौनपुर में जमीनी हकीकत देखते और झेलते हुए लोगों का मोहभंग होने लगा है। एक दुःखद मिसाल यह कि यहाँ सत्ताधारी पार्टी तथा मातृ संगठन के साफ-सुथरे दिखाई देते रहे कई प्रमुख नेता वसूली और भ्रष्टाचार के नये कीर्तिमान स्थापित करने में जी जान से जुटे दिखाई देने लगे हैं। सरकार के कड़े तेवर से शुरू में घबराए-बौखलाए घोषित भ्रष्ट सरकारी अफसरों और कर्मचारियों के चेहरों पर दिखाई देती निश्चिंतता भरी मुस्कान जाहिर है कि जनता को क्या संदेश दे रही है। सरकारी काम थोड़ा और सुस्ती से निपटाने की बढ़ी प्रवृत्ति ने काम में गति पैदा करने की कोशिशों को पहले से भी 'अधिक महंगा' कर दिया है। शायद यह भी एक नई मिसाल ही है।
सड़कों की समयबद्ध हालत सुधारने की साल भर हुई सरकारी घोषणाओं से जौनपुर के संबंधित सरकारी विभाग तटस्थ रहे। इस दिशा में काम हाल ही में शुरू भी हुआ तो तब, जब यहां पर मुख्यमंत्री के दावों और वायदों का जम कर मजाक बन चुका था। पूरे साल मुख्यमंत्री के फरमानों और जनता की फरियादों को अनसुना करने वाले सरकारी विभागों ने वित्तीय वर्ष की समाप्ति का समय आते ही ताबड़तोड़ काम लगवा कर शहर की सड़कें बनवाना शुरू कर दिया। बजट खपाने के लिए दिखाई गयी इस तत्परता से बन रही सड़कों पर
एक निगाह डालते ही समझा जा सकता है कि काम में गुणवत्ता देखना बेवकूफी है। भू माफिया के खिलाफ कार्रवाई शुरू हुई लेकिन दो कदम चलने के बाद ही जैसे मामला निपट गया। इसके बाद जौनपुर शहर में अधिक तेजी से नाला, पोखरा, मुख्य मार्गों के किनारे स्थित खड्डे पाट कर जमीन कब्जा करने की कोशिशें क्या सरकार को अच्छी मिसाल कायम करने का मौका दे रही हैं ? खास बात यह है कि सरकारी मंशा के विपरीत हो रही इस तरह की कोशिशों में सत्ताधारी पार्टी से जुड़े स्थानीय जन प्रतिनिधि भी सीधे तौर पर शामिल दिखाई दे रहे हैं।
जौनपुर में तेज रफ्तार बाइकों पर सवार लफंगा शैली के युवाओं का सड़कों और चौराहों पर उत्पात एक साल में कई गुना बढ़ा है, फर्क सिर्फ इतना है कि अब उनके सिर पर केसरिया गमछा बंधा रहता है। शहर में कोतवाली चौराहे से लेकर ओलंदगंज के बीच भीड़ भरी सड़क पर बेहद मामूली बातों को लेकर प्रतिदिन औसतन चार-पाँच मारपीट की घटनाएं इन्हीं 'बहादुरों' के सौजन्य से हो रही हैं। जौनपुर शहर में शराब एवं बीयर की दुकानों के आसपास सरेआम - सरेराह कहीं भी धड़ल्ले से नशीली चुस्की लेते पियक्कड़ों में युवाओं की भागीदारी 75 फीसदी तक पहुँच गई है। मौजूदा 'सात्विक सरकार' की नई आबकारी नीति में अधिक से अधिक शराब बेच कर मोटा राजस्व वसूलने की चाहत क्या सरकारी अमले को 'कहीं भी पियो - खूब पियो' की बयार रोकने देगी ।
त्योहारों पर शक्ति प्रदर्शन की लगातार बढ़ रही प्रवृत्ति भी नई मिसाल बन रही है। जौनपुर में एक साल के दौरान धार्मिक जुलूसों की बढ़ती संख्या, उनमें बढ़ती भीड़ और उससे अधिक अनुपात में लहराये जाते हथियार हमें किस दिशा में लेकर जा रहे हैं ? यहां निकट भविष्य में निकलने वाले किसी भी धार्मिक जुलूस को बतौर प्रमाण देखा जा सकता है। सरकार पर्यटन में अपार संभावनाएं देख रही है। पर्यटन स्थलों के विकास की भारी-भरकम योजनाएं घोषित हुई हैं लेकिन जौनपुर की ऐतिहासिकता और यहाँ पर पर्यटन की संभावनाओं को प्रदेश के पर्यटन विभाग द्वारा अचानक सिरे से खारिज कर देना भी एक मिसाल है। नई मिसालें ढेरों हैं। सरकार सामने अच्छी मिसालें रखेगी और विपक्ष पेश करेगा सिर्फ बुरी मिसालें। फैसला करना है जनता को और वह करेगी इसका वक्त आने पर।
#अरविंद उपाध्याय