सोमवार, फ़रवरी 26, 2018

प्रतीकों की पीठ पर जातीय गोलबन्दी

प्रतीकों की पीठ पर जातीय गोलबन्दी

  राजनीतिक लक्ष्यों के लिए जातीय गोलबन्दी की नई कोशिशें फिर तेज हो रही हैं। अगले लोकसभा चुनाव 2019 पर केन्द्रित इन बेचैन कोशिशों से मनमाफिक परिणाम निकालने में ढेरों संगठन जुटे हुए हैं। केन्द्र में सरकार बनाने का रास्ता उत्तर प्रदेश से ही होकर जाना है। संकेत मिल रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में विजय रथ दौड़ाने के लिए पिछले चुनाव की तरह इस बार भी पूर्वांचल को ही केन्द्र बनाया जायेगा। इसलिए जौनपुर में भी कई संगठनों द्वारा जातिगत जमावड़े की मुहिम शुरू कर दी गई है और इसके लिए प्रतीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है।
  जातीय स्तर पर लोगों को एक मंच पर लाने के लिए संगठन के नेताओं का कद छोटा पड़ रहा है, इसलिए अब इतिहास के पन्नों से खोज कर 'प्रतीक' लाये जा रहे हैं। ताजा मामला चौहान बिरादरी के लोगों को किसी तरह एकजुट करने की एक कोशिश का है। बीती 13 फरवरी को जफराबाद क्षेत्र के हौज गाँव में स्थित शहीद स्मारक पर 'सम्मान समारोह' के नाम पर चौहान बिरादरी के लोगों को जुटाया गया। नई दिल्ली स्थित "प्राचीन लवणकार एवं व्यापारी जाति परिसंघ" नाम का एक संगठन इसका आयोजक रहा।


  इस संगठन ने चौहान बिरादरी के बीच पर्चे बाँट कर जन सम्पर्क किया। बिरादरी के लोगों को बताया गया कि उनके पूर्वजों ने मुगलों से लेकर अंग्रेजों तक से लोहा लिया। देश की आजादी के लिए लड़ाईयां लड़ीं, अपना बलिदान दिया लेकिन उन्हें गुमनाम कर दिया गया। पक्षपाती साहित्यकारों तथा इतिहासकारों ने उनके योगदान का सही उल्लेख नहीं किया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में हौज गाँव के 15 चौहान वीरों को महुआ के पेड़ पर लटका कर फाँसी देने तथा 1942 में अगरौरा एवं धनियांमऊ में ब्रिटिश फौज की गोली से मरे चौहान शहीदों को प्रतीक बनाकर उन्हें सम्मान दिलाने की अपील के साथ बिरादरी की भीड़ जुटाई गई।
  कार्यक्रम में स्थानीय लोगों के अतिरिक्त परिसंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुनीब सिंह, कर्नाटक से आये स्वामी पुरुषोत्तमानन्द, बिहार की पूर्व मंत्री रेनू देवी, पूर्व विधायक शिव शंकर चौहान भी शामिल हुए। इसके पूर्व संगठन के लोगों ने जौनपुर जिले में व्यापक तौर पर सम्पर्क करके बिरादरी को इन शहीदों के नाम पर एक जगह जुटाने की भरपूर कवायद की। इस जमावड़े का भविष्य में कौन सा राजनीतिक दल कितना फायदा  उठा पायेगा, यह देखना है।
  पिछले महीने अखिल भारतीय क्षत्रिय महासभा नाम के एक संगठन ने महाराणा प्रताप और महारानी पद्मावती जैसे ऐतिहासिक प्रतीकों के बलिदान को सामने रख कर जातीय गोलबन्दी की कोशिश शुरू की। बैंडिट क्वीन फूलन देवी की हत्या की स्वीकारोक्ति  करने वाले एक चर्चित किरदार शेर सिंह राणा खास तौर पर जौनपुर में आयोजित क्षत्रिय महासभा के कार्यक्रम में शामिल होने आए। हालाँकि संबंधित कार्यक्रम को शेर सिंह राणा द्वारा प्रायोजित जातीय गोलबन्दी की कोशिश के तौर पर देखा गया। इसी तरह की कवायद में अलग-अलग नामों से कुछ अन्य संगठन भी सक्रिय हैं।
  गौरतलब है कि ऐतिहासिक घटनाओं तथा व्यक्तित्वों को प्रतीक बनाकर जातीय स्तर पर लोगों को एक मंच पर लाने की कोशिशें नई नहीं हैं। लेकिन, जब-जब मुद्दों और वैचारिक स्तर पर राजनीतिक दल लड़ाई में अपने को कमजोर पाते हैं तब सम्प्रदाय, क्षेत्र, भाषा, और जाति जैसे फैक्टर सामने रखे जाने लगते हैं। प्रतीकों के सहारे जातीय संगठन विकसित करने की कोशिशें अन्य जातियों के लोग भी करते रहे हैं।                               महर्षि परशुराम के नाम पर ब्राह्मणों के कई संगठन खड़े हैं तो भगवान चित्रगुप्त के नाम पर कायस्थों के अनेक संगठन ढोल बजा रहे हैं। सम्राट अशोक को अपने पूर्वज के तौर पर सामने रख कर मौर्य संगठनों ने उनके ऊपर अपना कब्जा मान लिया है। भगवान सहस्त्रबाहु के नाम पर जौनपुर से लेकर देश भर में जायसवाल समाज के कई संगठन आपस में ही तलवारबाजी कर रहे हैं। इस राजनीतिक खेल में तमाम महापुरुषों को आम जन मानस के बीच में से खींच कर उन्हें जातिगत खांचे में खड़ा कर दिया गया है। बाबा साहब डॉ. अम्बेडकर पर दलित संगठन अपना एकाधिकार समझता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को धीरे धीरे साहू समाज खींच रहा है। इसी तरह के ढेरों उदाहरण हैं।
  विभिन्न संगठनों द्वारा जातिगत स्तर पर गोलबन्दी की हो रही कोशिशों को विशुद्ध रूप से से राजनीतिक माना जा रहा है। अगले लोकसभा चुनाव तक ऐसी न जाने कितनी कवायदें होंगी। तरह तरह के संगठनों द्वारा चलायी जा रही मुहिम के पीछे कोई न कोई राजनीतिक चेहरा छिपा हुआ है। इसके साथ ही कुछ ऐसे लोग भी इन कोशिशों में सीधे तौर पर बेहद सक्रिय हैं जिन्हें राजनीति की मुख्य धारा में स्थापित होने का यह शार्ट कट तरीका ही भा रहा है। इन्हीं पैंतरों से सत्ता सुख भोग रहे कई नेताओं के चेहरे, इन कोशिश करने वाले लोगों के इरादे बुलन्द कर रहे हैं। यह कोशिशें सफल कितनी होंगी यह तो भविष्य के गर्भ में है।
                            🔘अरविंद उपाध्याय