नोटबन्दी के बाद अब बाजार सिक्कों के विनिमय के एक बड़े संकट से त्रस्त है। बाजार में नोट से अधिक सिक्के प्रचलन में हैं और यही मौजूदा समस्या का वास्तविक कारण है। हालात यह हैं कि जौनपुर समेत पूरे पूर्वी उत्तर प्रदेश में कारोबार का पहिया सामान्य गति से भी नहीं चल पा रहा है। 'नो क्वायंस' की सुनामी ने ग्राहक, व्यापारी और बैंकर्स से जुड़े पूरे सिस्टम को औंधे मुँह गिरा दिया है। हाल-फिलहाल तो सारी कोशिशें नाकाम हैं और समस्या दूर होने के आसार नहीं दिखाई दे रहे हैं।
आम उपभोक्ता अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जब बाजार जाता है तो हर बार इस समस्या से उसका साबका पड़ रहा है। दुकानदार सामान का मूल्य सिक्कों के रूप में लेने से परहेज करता है लेकिन वापस की जाने वाली राशि सिक्कों के रूप में देना चाहता है। खरीददार भी ऐसा ही करने की कोशिश करता है। लेनदेन की इस प्रक्रिया में अक्सर ग्राहक और व्यापारी के बीच अप्रिय स्थितियाँ पैदा हो जा रही हैं। सहज उपलब्ध 'डायल 100' का इस्तेमाल करके इसकी पुलिस से शिकायत करना आम बात हो गई है। समर्थ लोग तो सीधे आला अफसरों तक बात पहुँचा कर दुकानदारों को उनकी औकात बताने में भी गुरेज नहीं करते।
रोज की शिकायतों से परेशान पुलिस और प्रशासन के अधिकारी सिक्के स्वीकार न करने को गैर कानूनी और देशद्रोह के बराबर अपराध करार देकर चेतावनी जारी कर के छुट्टी पाते हैं। परेशान कारोबारी जब बैंकों द्वारा सिक्के न स्वीकार करने का मुद्दा उठाते हैं तो उन्हें भी आरबीआई की गाइड लाइन का हवाला देकर चेतावनी जारी कर दी जाती है। समस्या यह है कि इन कवायदों का कोई सार्थक परिणाम अभी तक नहीं निकल पाया है। दुकानदारों की पीड़ा यह है कि सौ-दो सौ रुपये से अधिक का भुगतान सिक्के के रूप में न तो दूसरा व्यापारी/ डीलर / स्टाकिस्ट या एजेंसी लेती है और न तो बैंक लेना चाहता है। इससे सभी कारोबारियों का व्यापार प्रभावित हो रहा है और उनकी समझ में नहीं आ रहा है कि वह अपने यहां डम्प पड़े सिक्के कहाँ खपाएं। स्थिति यह है कि अनेक कारोबारी अपना व्यावसायिक नुकसान सह कर भी सिक्कों के रूप में लेन-देन से तौबा करने लगे हैं।
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 18 जुलाई 2016 को जारी किये गये अपने मास्टर परिपत्र में बैंकों से यह अपेक्षित किया है कि लेनदेन अथवा विनिमय में नोट एवं सिक्के स्वीकारने जैसी ग्राहक सेवाएं जनसाधारण को अधिक तत्परता और कारगर ढंग से प्रदान करें ताकि उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों में इस प्रयोजन हेतु न आना पड़े। भारतीय रिजर्व बैंक और वाणिज्य बैंकों के बीच करार का भी मास्टर परिपत्र में हवाला दिया गया है, जिसके अनुसार
(a) बैंक शाखाओं को नोटों के बदले सिक्कों को स्वीकृत करना होगा ।(b) उन्हें जनसाधारण से बिना किसी रूकावट के सभी मूल्यवर्ग के सिक्कों, जो भारतीय सिक्का अधिनियम, 2011 के अधीन वैध मुद्रा हैं; को स्वीकार करना होगा और उनके मूल्य का नोटों में भुगतान करना होगा ।(c) उन्हें अब तक के अनुसार ग्राहकों की सुविधा हेतु भारी मात्रा में प्राप्तियों के लिए सिक्के गिनने वाली मशीनों का प्रयोग करना चाहिए या फिर सिक्कों को तौल कर स्वीकार करना चाहिए ।
जनता से कहा गया है कि अगर किसी भी बैंक के कर्मचारी सिक्का लेने से मना करते हैं, तो इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से करें। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के बैंकिंग लोकपाल से भी इसकी शिकायत की जा सकती है। बैंक कर्मचारी भी इस बात से वाकिफ हैं कि सिक्का जमा करने पर पाबंदी नहीं है लेकिन इसकी गिनती करने से बचने के लिए वे ग्राहकों को लौटा देते हैं।दूसरे इस समय उनका एक संकट यह भी है कि भुगतान में सिक्के लेने से हर कोई बचना चाहता है। इधर आरबीआई की हालिया गाइड लाइन के अनुसार बैंक की शाखाओं के लिए यह आवश्यक है कि वे ग्राहकों से एक रुपये या उससे ऊपर तक के सिक्के एक हजार रुपये मूल्य तक की जमाराशि के तौर पर स्वीकार करें।
तमाम निर्देशों का भी ज्यादा असर नहीं पड़ा है। सबसे खराब हालत तो एक रुपये के सिक्के की है जिसे बन्द करार देकर कोई नहीं ले रहा है। यह बात बेहद अहम है कि इसी तरह की अफवाह के जरिए पिछले दिनों 50 पैसे के सिक्के को परिचालन से बाहर किया जा चुका है। अपने स्तर पर लिए जा रहे मनमाने फैसले का एक और उदाहरण सामने आया है, एफएमसीजी क्षेत्र की एक प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनी ने दस रुपये तक के नोट भी भुगतान में लेने से मना कर दिया है। हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं,इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो समस्या और भी विकट हो जाएगी।
#अरविंद उपाध्याय
आम उपभोक्ता अपनी रोजमर्रा की जरूरतों के लिए जब बाजार जाता है तो हर बार इस समस्या से उसका साबका पड़ रहा है। दुकानदार सामान का मूल्य सिक्कों के रूप में लेने से परहेज करता है लेकिन वापस की जाने वाली राशि सिक्कों के रूप में देना चाहता है। खरीददार भी ऐसा ही करने की कोशिश करता है। लेनदेन की इस प्रक्रिया में अक्सर ग्राहक और व्यापारी के बीच अप्रिय स्थितियाँ पैदा हो जा रही हैं। सहज उपलब्ध 'डायल 100' का इस्तेमाल करके इसकी पुलिस से शिकायत करना आम बात हो गई है। समर्थ लोग तो सीधे आला अफसरों तक बात पहुँचा कर दुकानदारों को उनकी औकात बताने में भी गुरेज नहीं करते।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 18 जुलाई 2016 को जारी किये गये अपने मास्टर परिपत्र में बैंकों से यह अपेक्षित किया है कि लेनदेन अथवा विनिमय में नोट एवं सिक्के स्वीकारने जैसी ग्राहक सेवाएं जनसाधारण को अधिक तत्परता और कारगर ढंग से प्रदान करें ताकि उन्हें भारतीय रिजर्व बैंक के क्षेत्रीय कार्यालयों में इस प्रयोजन हेतु न आना पड़े। भारतीय रिजर्व बैंक और वाणिज्य बैंकों के बीच करार का भी मास्टर परिपत्र में हवाला दिया गया है, जिसके अनुसार
(a) बैंक शाखाओं को नोटों के बदले सिक्कों को स्वीकृत करना होगा ।(b) उन्हें जनसाधारण से बिना किसी रूकावट के सभी मूल्यवर्ग के सिक्कों, जो भारतीय सिक्का अधिनियम, 2011 के अधीन वैध मुद्रा हैं; को स्वीकार करना होगा और उनके मूल्य का नोटों में भुगतान करना होगा ।(c) उन्हें अब तक के अनुसार ग्राहकों की सुविधा हेतु भारी मात्रा में प्राप्तियों के लिए सिक्के गिनने वाली मशीनों का प्रयोग करना चाहिए या फिर सिक्कों को तौल कर स्वीकार करना चाहिए ।
जनता से कहा गया है कि अगर किसी भी बैंक के कर्मचारी सिक्का लेने से मना करते हैं, तो इसकी शिकायत उच्चाधिकारियों से करें। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के बैंकिंग लोकपाल से भी इसकी शिकायत की जा सकती है। बैंक कर्मचारी भी इस बात से वाकिफ हैं कि सिक्का जमा करने पर पाबंदी नहीं है लेकिन इसकी गिनती करने से बचने के लिए वे ग्राहकों को लौटा देते हैं।दूसरे इस समय उनका एक संकट यह भी है कि भुगतान में सिक्के लेने से हर कोई बचना चाहता है। इधर आरबीआई की हालिया गाइड लाइन के अनुसार बैंक की शाखाओं के लिए यह आवश्यक है कि वे ग्राहकों से एक रुपये या उससे ऊपर तक के सिक्के एक हजार रुपये मूल्य तक की जमाराशि के तौर पर स्वीकार करें।
तमाम निर्देशों का भी ज्यादा असर नहीं पड़ा है। सबसे खराब हालत तो एक रुपये के सिक्के की है जिसे बन्द करार देकर कोई नहीं ले रहा है। यह बात बेहद अहम है कि इसी तरह की अफवाह के जरिए पिछले दिनों 50 पैसे के सिक्के को परिचालन से बाहर किया जा चुका है। अपने स्तर पर लिए जा रहे मनमाने फैसले का एक और उदाहरण सामने आया है, एफएमसीजी क्षेत्र की एक प्रसिद्ध बहुराष्ट्रीय कंपनी ने दस रुपये तक के नोट भी भुगतान में लेने से मना कर दिया है। हालात दिन-प्रतिदिन बिगड़ते जा रहे हैं,इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो समस्या और भी विकट हो जाएगी।
#अरविंद उपाध्याय